- अरविन्द चतुर्वेद -
वे सिंह हैं, उपाध्याय हैं, राय हैं कि जायसवाल हैं, लेकिन हैं काशीनाथ! कचौड़ीगली जाते हैं तो काशीफल की तरकारी और कचौड़ी के लिए मुंह में पानी आ जाता है. बाज़ार जाते हैं सब्जी का थैला लेकर तो कुछ खरीदें या नहीं, मगर गोल, चिपटे, हरित-पीताभ कोंहड़े से मुंह नहीं फेर सकते. बहुत सारी सब्जियां हैं, जो फल ही हैं - लौकी है, परवल है, करेला है, टमाटर है, कटहल है. लेकिन कोई इन्हें फल नहीं कहता. ये सब रह गईं तरकारी की तरकारी. हाँ, बनारसी आदमी का जिस चीज से लगाव हो जाए, उसे महिमा के ऊंचे आसन पर बैठाना वाह खूब जानता है. वर्ना लद्धड-सा, बेडौल शक्ल वाला कुम्हड़ा काशीवासियों की रसोई में पहुँच कर काशीफल का दर्ज़ा न पा जाता! है दिल्ली, मुम्बई और कोलकाता वालों में कूबत कि किसी तरकारी को दिल्लीफल, मुम्बईफल और कोलकाताफल बना दें ? सो, काशीनाथ कोई सिंह हों या उपाध्याय - काशीफल से तृप्त होने के बाद बनारसी की दूकान पर कभी भी पान घुलाते मिल जायेंगे. मथुरा राय, अयोध्यानाथ, हरिद्वार पांडे और ऋषिकेश को अपवाद ही समझिये. नाम के मामले में बनारसी दास और काशीनाथ का कुनबा ही बड़ा है और अखिल भारतीय भी.
यहाँ एक प्रजाति और भी है - हास्य के हुनरमंदों और होनहारों की. पुछल्ले की तरह अगर उनके नाम में बनारसी न लगा होता तो व्यक्तित्व अधूरा रहता. हास्य से अधिक हास्यास्पद होते महफ़िल में वह रंगत न आती, जो बनारसी पूंछ के कारण आती है. भैयाजी और चकाचक की दिवंगत आत्मा क्षमा करे, आजकल उनकी 'बनारसी' पूंछ सांड, चपाचप, धूर्त, बमचक और डंडा जैसे हास्यावतारों ने लगा रखी है. गौर करने की बात है कि जब तक इन्हें अपनी बनारसी पूंछ का ख्याल रहता है, तबतक तो अच्छी हास्य कवितायें लिखते हैं, लेकिन जब-जब भूल जाते हैं कि उनके पास एक गौरवशाली पूंछ भी है, तब - तब हास्यास्पद हो जाते हैं.
ब्रेक के बाद
जिनकी जीवन-आस्था जितनी गहरी है और जो जीवन-संघर्ष में यकीन रखते हैं, उनको विश्वास है कि जब तक पान के पत्ते में हरियाली और चूने-कत्थे में लाली बरकरार है, तब तक बनारसी रंग बना रहेगा. अपने पिया से मेंहदी ले आने की अपील करने वाली खांटी बनारसी स्त्री जानती है - रंग लाती है हिना पत्थर पे घिस जाने के बाद! हर साल सावन आता है बनारसी स्त्री की इस अपील के साथ - ' पिया मेंहदी ले आइ द मोती झील से, जाके साईकिल से ना...!' अब पिया हीरो होंडा से चलने लगे हैं तो जाएँ पितरकुंडा से मेंहदी ले आयें ! एक पिया कार वाले हैं और हुंदाई पर चलते हैं तो उनसे अपील की गयी - ' मेंहदी ले आइ द नतिनियादाई से जाके हुंदाई से ना...!' लोकरंग की यह अपील जबतक बनी रहेगी तबतक बनारस का बाल बांका नहीं हो सकता. हर हर महादेव का नारा लगाने वाला कालकूट का अनुगामी बनारसी समय की शिला पर हर दौर की कड़वाहट पीसकर पीना जानता है भूमंडलीकरण की फितरत
डाल-डाल तो बनारस की हिकमत पात-पात ! विज्ञजन इसी को बनारसी उत्पात कहते हैं...!
How to Make Seeded Oat Bread
2 years ago
8 comments: on "बानगी बनारस की (दो)"
अच्छा डिफाईन किया है बनारस और बनारसी को -हमहूँ तो हैं !
रेशम हव तो औरो कुछ त हव !
waah !
बहुत बढ़िया.
बनारसी पूछ हो न हो बनारसी तो बनारसी ही रहता है
सुन्दर
बनारस की अद्भुत बानगी पढ़ने को मिली ।
very nice sir ji
बनारस शहर का वर्णन . लगा वहीं कहीं बैठा हूँ . मन कहने लगा कि हर हर महादेव बोल दूं. अरविंद जी , कभी बहरी अलंग के बारे में भी लिखियेगा. कभी चेतगंज चलेंगें आपके साथ . नक्कटैया देखने आये लोगों से मिलेंगें .. आप को पढ़ कर लगता है कि कहीं अपनी ही माटी में पाँव पड़ गया है ..
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