अरविन्द चतुर्वेद
जिस्म, जाम और जान की बाजी- तीन खेल से सोनागाछी...। जी हां, सोनागाछी के ये तीन खास खेल हैं। मसलन 1992 में सोनागाछी जिस्म बाजार के एक अड्ïडे से कोलकाता पुलिस के ही एक जवान की लाश मिली थी। कभी-कभार जान लेने-देने के ऐसे हादसे हो जाते हैं तो चंद दिनों के लिए सोनागाछी में तूफान-सा आ जाता है- पुलिस की छापेमारियां, लड़कियों-दलालों की धर-पकड़, काली गाड़ी में सबको लादकर थाने ले जाना। लेकिन वहां भी कबतक रखेंगे? एक-आध दिन में ले-देकर जमानत हो जाती है। फिर सबकुछ पहले जैसा।बड़ी पुरानी कहावत है कि कंचन-कामिनी और मदिरा की तिकड़ी भी अपने आप बन जाती है। जिस्म की दूकान पर मौज-मस्ती के लिए बेफिक्र बनाने में जाम शायद मददगार साबित होता होगा। यह भी हो सकता है कि दो घूंट गले से उतरने के बाद गलत काम का अपराध बोध काफूर हो जाता हो। या फिर बेपर्दगी का सामना करने के लिए शराब पीकर पर्देदार लोग अपनी झिझक व शर्म भगाते हों और हिम्मत जुटाते हों।
मसलन, दलाल के साथ गली से गुजरते हुए एक बेफिक्र अधेड़ और उसके साथ लडख़ड़ाते हुए चल रहे 25-26 साल के युवक के बीच की बातचीत गौर करने लायक है-
- अमां यार, घबड़ाने की क्या बात थी? साला, मूड खराब हो गया। बेकार तुमको दारू पिलाया।
- नेई, ये बात नेई। हमको वो जंची ही नेई। मेरा सर चक्कर खा रहा था, साला।
- तेरे चक्कर में हमारा भी मजा खराब हो गिया। हम अब्बी और दारू पिएगा।
- ठीक है, हम आपको दारू पिलाएगा। बाकी आपको कसम, अब्बा को बिल्कुल खबर न चले।
- हम तुम्हारा दारू नेई पिएगा। तुमको हमारा यकीन नेई? क्या समझता, हमारे पास पैसा नेई?
वह अधेड़ आदमी नशे के सुरूर में नौजवान पर उखड़ गया। नौजवान नशे में लडख़ड़ाती आवाज में अधेड़ साथी को मनाने की कोशिश में मिमियाने लगा। गरमी कुछ खास नहीं थी, फिर नौजवान का चेहरा पसीने से तर-ब-तर क्यों था- घबराहट और डर की वजह से, या तेज नशे में खाए पान के किमाम व जर्दे की वजह से?
सोनागाछी की गलियों में कई जगह तो जाहिरा तौर पर शराब मिलती है और कई जगह किस्म-किस्म की ऐसी रंग-बिरंगी शीशियों-बोतलों में कि सरसरी तौर पर लगे कहीं यह शरबत या टॉनिक तो नहीं है। प्याजी पकौड़ी की दूकानों पर बाजार की नजाकत से वाकिफ लोगों को गिलास में पानी की जगह पानी के ही रंग वाली देसी दारू भी आसानी से मिल जाती है। कई दूकानों पर चाय-पकौड़ी और दूसरी चीजें बेचना तो महज एक आड़ है। दरअसल इन दूकानों पर बिकती है देसी शराब, जिसे बांग्ला या बांग्लू कहते हैं।
शौकीन ग्राहकों के मांगने पर बाड़ीवाली बऊ दी खुद भी देसी-विदेशी शराब मंगा देती है। लेकिन आम तौर पर धंधे के वक्त लड़कियों के दारू पीने पर मनाही है। शायद इसलिए कि लड़की कहीं धंधे के दौरान ही नशे के सुरूर में बहक कर धंधा चौपट न कर दे। हां, सारी रात के लिए आए और बुक कराए ग्राहक की फरमाइश पर लड़की का दारू-सिगरेट पीना जरूर धंधे का हिस्सा है।
जिस्म बाजार के कई अड्डे किसिम-किसिम के अपराधियों, गुंडे, बदमाशों के पनाहगार भी हैं। क्योंकि वे ग्राहक हैं और ग्राहक के लिए दरवाजा हर वक्त खुले रखना इस बाजार का धर्म है। एक दलाल ने एक दिलचस्प बात बताई कि यहां एक अड्डे पर तो केवल शहर के गुंडे-बदमाश ही आते हैं। यह अड्डा आम ग्राहक के लिए नहीं है। शायद अड्डे की मालकिन ने सब तरह से हिसाब बैठाकर इसे स्पेशल बना रखा है।
..... जारी
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