ऐसा नहीं है कि खाइं सिर्फ गांवों और शहरों के बीच ही है। खुद शहरों में भी आबादियों के बीच गहरी खाइयां हैं और अनेक परतें हैं। मध्यकाल के किसी संत कवि ने एक सवाल उठाया था- ऐसी नगरिया केहि विधि रहना, लेकिन रहने की मुश्किलें आज भी कम नहीं हैं। यह सवाल आम शहरी से लेकर सरकार के लिए भी बड़ी चुनौती बना हुआ है। गांवों के विकास का चाहे जितना कीर्तन करें और ग्रामीण रोजगार बढ़ने का ढोल पीटें, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी गांवों से शहरों की ओर आबादी का जबरदस्त खिंचाव बना हुआ है और भीड़ व आबादी के समंदर में शहर छटपटा रहे हैं। शहरों में लोगों के पास रहने को घर नहीं हैं। आवास की समस्या कितनी गहरी है, यह शहरों के फुटपाथों, शहर सीमांत की झुग्गी-झोपड़ियों और शहर के भीतर भी किसी कोने-अंतरे में चकत्ते की तरह आबाद अव्यवस्थित रहवास के रूप में देख सकते हैं। एक ताजा सरकारी रिपोटर् के मुताबिक देश के शहरों में पौने दो करोड़ मकानों की कमी है और विडंबना यह भी कि एक करोड़ से ’यादा मकान खाली पड़े हैं, जिनमें कोई रहने वाला नहीं है। यानी इसी को कहते हैं जल बिच मीन पियासी। सरकारी रिपोर्ट बताती है कि शहरों में रहने वाले कुल 8.11 करोड़ परिवारों में से 1.87 करोड़ परिवारों के पास रहने की उचित जगह नहीं है। ऐसे में घरों की कमी से निपटने के लिए दूसरे उपायों के अलावा केंद्रीय आवास मंत्रालय ने सभी रा’य सरकारों को सलाह दी है कि अगर किसी के पास एक से अधिक मकान हैं और वे लगातार खाली रहते हैं तो उन मकानों के मालिक से टैक्स अथवा लेवी वसूल की जाए। आवास मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोटर् में बताया गया है कि देश में करीब एक करोड़ 10 लाख मकान बंद पड़े हैं, जिनमें लंबे समय से कोई नहीं रहता है। केंद्रीय आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री कुमारी शैलजा का कहना है कि सरकार किसी को दूसरा, तीसरा या चौथा मकान खरीदने से तो नहीं रोक सकती और न ऐसा चाहती ही है, लेकिन अगर किसी के पास एक से अधिक मकान हैं तो उन्हें खाली न रखा जाए। यानी कि मकान मालिक या उसका परिवार उसमें नहीं रहता तो उसे किराए पर दे दे, ताकि मकानों की कमी से एक हद तक निपटा जा सके। यदि कोई फालतू यानी अतिरिक्त मकान खाली ही रख रहा है तो उस पर राज्य सरकारें टैक्स या लेवी लगाकर हासिल पैसे का इस्तेमाल गरीबों के लिए मकान बनाने में कर सकती हैं। प्रोफेसर अमिताभ कुंडू की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति का अनुमान है कि अगली पंचवर्षीय योजना 2012-17 में देश में करीब एक करोड़ 87 लाख 80 हजार मकानों की कमी रहेगी। इसमें से 56.2 फीसदी कमी ईडब्लूएस यानी आर्थिक रूप से पिछड़ी श्रेणी में रहेगी, जबकि एलआईजी में 39.5 प्रतिशत और एमआईजी में 4.3 प्रतिशत मकानों की कमी का अंदाजा लगाया गया है। विशेषज्ञ समिति के अनुसार अभी के हालात में देशभर में एक करोड़ से भी ज्यादा जो मकान यों ही बंद अथवा खाली पड़े हुए हैं, उनमें से उत्तर प्रदेश में 8.79 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 19.04 प्रतिशत तो पश्चिम बंगाल में 4.80 प्रतिशत हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश में 5.53 प्रतिशत, तमिलनाडु में 6.44 प्रतिशत, बिहार में 1.55 प्रतिशत और राजस्थान में 5.79 प्रतिशत मकानों में कोई रहने वाला नहीं है और वे खाली पड़े हुए हैं। विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का ध्यान देने लायक पहलू यह भी है कि जिन राज्यों के शहरों में मकान खाली पड़े रहने के आंकड़े दिए गए हैं, उन्हीं राज्यों में कुल मकानों की कमी का 60 प्रतिशत हिस्सा आता है। मालूम हो कि शहरों में मकानों की कमी से निपटने के लिए केंद्र रा’य सरकारों को राजीव आवास योजना के तहत किराए के मकान बनाने के लिए आर्थिक मदद दे रहा है। यही नहीं, रा’यों से कहा गया है कि वे अपने यहां मॉडल रेंट कंट्रोल एक्ट बनाएं, जिसे किराए के मकानों पर लागू किया जाए। कुल मिलाकर तस्वीर यही है कि आजादी के इतने वषों बाद भी रोटी, कपड़ा और मकान की बुनियादी चुनौती बरकरार है।
केहि विधि रहना!
ऐसा नहीं है कि खाइं सिर्फ गांवों और शहरों के बीच ही है। खुद शहरों में भी आबादियों के बीच गहरी खाइयां हैं और अनेक परतें हैं। मध्यकाल के किसी संत कवि ने एक सवाल उठाया था- ऐसी नगरिया केहि विधि रहना, लेकिन रहने की मुश्किलें आज भी कम नहीं हैं। यह सवाल आम शहरी से लेकर सरकार के लिए भी बड़ी चुनौती बना हुआ है। गांवों के विकास का चाहे जितना कीर्तन करें और ग्रामीण रोजगार बढ़ने का ढोल पीटें, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी गांवों से शहरों की ओर आबादी का जबरदस्त खिंचाव बना हुआ है और भीड़ व आबादी के समंदर में शहर छटपटा रहे हैं। शहरों में लोगों के पास रहने को घर नहीं हैं। आवास की समस्या कितनी गहरी है, यह शहरों के फुटपाथों, शहर सीमांत की झुग्गी-झोपड़ियों और शहर के भीतर भी किसी कोने-अंतरे में चकत्ते की तरह आबाद अव्यवस्थित रहवास के रूप में देख सकते हैं। एक ताजा सरकारी रिपोटर् के मुताबिक देश के शहरों में पौने दो करोड़ मकानों की कमी है और विडंबना यह भी कि एक करोड़ से ’यादा मकान खाली पड़े हैं, जिनमें कोई रहने वाला नहीं है। यानी इसी को कहते हैं जल बिच मीन पियासी। सरकारी रिपोर्ट बताती है कि शहरों में रहने वाले कुल 8.11 करोड़ परिवारों में से 1.87 करोड़ परिवारों के पास रहने की उचित जगह नहीं है। ऐसे में घरों की कमी से निपटने के लिए दूसरे उपायों के अलावा केंद्रीय आवास मंत्रालय ने सभी रा’य सरकारों को सलाह दी है कि अगर किसी के पास एक से अधिक मकान हैं और वे लगातार खाली रहते हैं तो उन मकानों के मालिक से टैक्स अथवा लेवी वसूल की जाए। आवास मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोटर् में बताया गया है कि देश में करीब एक करोड़ 10 लाख मकान बंद पड़े हैं, जिनमें लंबे समय से कोई नहीं रहता है। केंद्रीय आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री कुमारी शैलजा का कहना है कि सरकार किसी को दूसरा, तीसरा या चौथा मकान खरीदने से तो नहीं रोक सकती और न ऐसा चाहती ही है, लेकिन अगर किसी के पास एक से अधिक मकान हैं तो उन्हें खाली न रखा जाए। यानी कि मकान मालिक या उसका परिवार उसमें नहीं रहता तो उसे किराए पर दे दे, ताकि मकानों की कमी से एक हद तक निपटा जा सके। यदि कोई फालतू यानी अतिरिक्त मकान खाली ही रख रहा है तो उस पर राज्य सरकारें टैक्स या लेवी लगाकर हासिल पैसे का इस्तेमाल गरीबों के लिए मकान बनाने में कर सकती हैं। प्रोफेसर अमिताभ कुंडू की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति का अनुमान है कि अगली पंचवर्षीय योजना 2012-17 में देश में करीब एक करोड़ 87 लाख 80 हजार मकानों की कमी रहेगी। इसमें से 56.2 फीसदी कमी ईडब्लूएस यानी आर्थिक रूप से पिछड़ी श्रेणी में रहेगी, जबकि एलआईजी में 39.5 प्रतिशत और एमआईजी में 4.3 प्रतिशत मकानों की कमी का अंदाजा लगाया गया है। विशेषज्ञ समिति के अनुसार अभी के हालात में देशभर में एक करोड़ से भी ज्यादा जो मकान यों ही बंद अथवा खाली पड़े हुए हैं, उनमें से उत्तर प्रदेश में 8.79 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 19.04 प्रतिशत तो पश्चिम बंगाल में 4.80 प्रतिशत हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश में 5.53 प्रतिशत, तमिलनाडु में 6.44 प्रतिशत, बिहार में 1.55 प्रतिशत और राजस्थान में 5.79 प्रतिशत मकानों में कोई रहने वाला नहीं है और वे खाली पड़े हुए हैं। विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का ध्यान देने लायक पहलू यह भी है कि जिन राज्यों के शहरों में मकान खाली पड़े रहने के आंकड़े दिए गए हैं, उन्हीं राज्यों में कुल मकानों की कमी का 60 प्रतिशत हिस्सा आता है। मालूम हो कि शहरों में मकानों की कमी से निपटने के लिए केंद्र रा’य सरकारों को राजीव आवास योजना के तहत किराए के मकान बनाने के लिए आर्थिक मदद दे रहा है। यही नहीं, रा’यों से कहा गया है कि वे अपने यहां मॉडल रेंट कंट्रोल एक्ट बनाएं, जिसे किराए के मकानों पर लागू किया जाए। कुल मिलाकर तस्वीर यही है कि आजादी के इतने वषों बाद भी रोटी, कपड़ा और मकान की बुनियादी चुनौती बरकरार है।
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2 comments: on "केहि विधि रहना!"
बहुत बढ़िया रिपोर्ट। काफी दिनों बाद आपके ब्लाग पर आना हो पाया। इसे जीप्लस पर भी पोस्ट करते तो और बढ़िया होता। अभी ब्लाग को सोशल नेटवर्किंग साइट्स ( जीप्लस, ट्विटर और फेशबुक ) पर देख पाना आसान हो गया है। आप जैसे अच्छे लेखकों को वहां अवश्य होना चाहिए क्यों कि यही साइट्स अच्छे ब्लाग एग्रीगेटर का काम कर रही हैं।
बढ़िया आलेख भाई साहब। अच्छी जानकारी मिली। आपके ब्लॉग पर पहली बार आया और लगा कि यहॉं आते रहना चाहिए।
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