अरविंद चतुर्वेद :
जैसे-जैसे अमेरिका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत-यात्रा का दिन यानी छह नवम्बर करीब आता जा रहा है, उत्सुकता और अधीरता दोनों बढ़ती जा रही है। जिस तरह इस यात्रा के पहले ही इसकी अहमियत और हासिल को लेकर अपेक्षाओं की अनुमानपरक मीमांसा हो रही है, उसके अनुरूप अगर ओबामा के सफर का फलितार्थ निकलता है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि एशियाई मुल्कों, खासकर दक्षिण एशिया में भारत को एक नई चमक के साथ ठोस अग्रगामिता मिलेगी। जैसाकि खुद प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इस यात्रा के संदर्भ में संकेत दिया है कि भारत और अमेरिका दोनों ही आपसी सम्बंधों में गुणात्मक बदलाव लाना चाहते हैं। जापान, मलेशिया और वियतनाम के हफ्तेभर के सफर से वापसी के दौरान मनमोहन सिंह ने कहा है कि भारत और अमेरिका के पारस्परिक सम्बंध एक नए चरण में प्रवेश कर गए हैं और दोनों देशों के बीच सौहार्द व समझ कायम है। प्रधानमंत्री ने इस बात की भी ताईद की है दोनों देशों के बीच विभिन्न मामलों पर रणनीतिक साझेदारी है और दोनों देशों की नजर ऐसे उन सभी क्षेत्रों व पहलुओं पर मिलकर यानी कि तालमेल के साथ काम करने की है, जो दोनों देशों के हितों से सम्बंध रखते हैं। बहरहाल, यह तो अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत-यात्रा का एक पहलू है, लेकिन दूसरा पहलू चुनौतियां पेश करने वाला भी है, जिसे कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस यात्रा की चमक को धुंधलाने की कोशिश करने के मकसद से कुछ चुनौतियां देर-सबेर जरूर दरपेश की जाएंगी, जिन पर दोनों ही देशों को सतर्क निगाह रखनी होगी। उदाहरण के लिए, यह अचानक या आकस्मिक नहीं है कि कश्मीर के अलगाववादी तथाकथित आजादी की मांग के लिए घाटी में अशांति और उपद्रव के ताप को लगातार ऊंचा और सरगर्म बनाए रखना चाहते हैं और उनकी मदद में इंधन के तौर पर पाकिस्तानी फौज सीजफायर का उल्लंघन करते हुए चेतावनी दिए जाने के बावजूद बीच-बीच में गोलाबारी कर चुका है। यही नहीं, अपनी धरती का आतंकवादियों के लिए इस्तेमाल न होने देने का वायदा करने के बावजूद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद में लश्करे-तैयबा समेत विभिन्न नामधारी आतंकी संगठनों के लोग दो दिन पहले ही हजारों की भीड़वाली रैली में खुलेआम शिरकत कर चुके हैं। उधर दूसरी ओर ओबामा के भारत आने की तारीख से चंद रोज पहले यमन से शिकागो के दो यहूदी प्रार्थनागृहों के पते पर भेजे जा रहे दो पार्सल बमों का पता चलने के बाद अमेरिका समेत यूरोपीय देशों के खिलाफ अलकायदा की नई हमलावर मुहिम की आशंका सामने आई है। इस मामले के रहस्योदूघाटन के संदर्भ में खुद अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने कुबूल किया है कि इस समय अमेरिका ठोस आतंकी धमकी का सामना कर रहा है। कुल मिलाकर ये चंद घटनाएं ही बताती हैं कि ओबामा की भारत-यात्रा के आगे-पीछे ऐसी नकारात्मक गतिविधियों का सिलसिला चलाकर चुनौतियां पेश करने का इरादा रखने वालों की तत्परता बढ़ सकती है। लेकिन, इस सबके बावजूद मोटे तौर पर जो बातें बहुत साफ हैं, वह यह कि क्लिंटन और बुश के जमाने की तुलना में ओबामा के अमेरिका का रूख भारत के प्रति बहुत सकारात्मक हुआ है और उसकी तमाम गलतफहमियां भी दूर हुई हैं। फिर इस दौरान भारत ने भी अपने बलबूते विकास की कई मंजिलें तय की हैं। वास्तविकता तो यह है कि समकालीन विश्व में भारत को ही नहीं अमेरिका को भी भारत से बेहतर तालमेल बनाकर चलने की जरूरत है।
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