अरविन्द चतुर्वेद :
क्या पूरा देश ही भ्रष्टाचार के भवन में बदलता जा रहा है? छोटे-मोटे भ्रष्टाचार की तो बात ही छोड़ दीजिए, समय-समय पर इतने बड़े-बड़े भ्रटाचारों का भेद खुलता है, जिनकी जांच और चर्चा कई महीनों तक छाई रहती है। दिलचस्प यह भी है कि एक घोटाले की चर्चा तब मद्धिम पड़ती है, जब उसको पीछे ठेलकर कोई नया घोटाला सीना ताने सामने आ खड़ा होता है। अब जैसे सत्यम वाले रामलिंगा राजू की चर्चा कोई नहीं करता, क्योंकि उनके घोटाले को पीछे धकेल कर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा का हजारों करोड़ का घोटाला सामने आ गया। इस घोटाले की जांच अभी भी चल रही है, लेकिन इसी बीच मधु कोड़ा की चर्चा को पीछे धकेलकर कामनवेल्थ खेलों के आयोजन और उससे सम्बंधित निर्माण कायों में हुआ महा घोटाला सामने आ गया। खेल खतम हुए तो अब खेलों के पीछे हुए खेल की जांच हो रही है। सरकार की पांच-पांच एजेंसियां अंधों के हाथी की तरह प्रसिद्ध दार्शनिक सत्य की तरह इस महा भ्रष्टाचार की जांच में लगी हैं। अब देखना यह है कि कौन पूंछ को सत्य बताता है, कौन कान को और कौन सूंड़ को। बहरहाल, भ्रष्टाचार का भवन बन चुके देश में राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान हुई वित्तीय अनियमितताओं और घोटालों की जांच के सिलसिले में तीन सौ आयकर अधिकारियों ने देशभर में एक साथ 50 स्थानों पर छापे मारे हैं। ये छापे खेलों से सम्बंधित चार ठीकेदार कंपनियोें के दफ्तरों-परिसरों में मारे गए हैं। केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी राष्ट्रमंडल खेलों के एक शीर्ष अधिकारी द्वारा दो सौ करोड़ की धांधली से संबंधित शिकायत की जांच कर रहा है। यह वही अधिकारी हैं, जिन्हें आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी का करीबी सहयोगी माना जाता है। गौरतलब है कि राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़ी अलग-अलग निर्माण परियोजनाओं में आर्थिक अनियमितताओं से संबंधित कुल 22 शिकायतों की जांच सीवीसी कर रहा है। भ्रष्टाचार की यह एक अकेली चादर ही कितनी देशव्यापी है, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि छापेमारी राजधानी दिल्ली समेत बंगलुरू, मुंबई, जमशेदपुर, कोलकाता में तो की ही गई है, अकेले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में करीब 50 स्थानों पर मारकर बड़ी संख्या में खेलों से सम्बंधित दस्तावेज जब्त किए गए हैं। क्या दिलचस्प बात है कि आयकर विभाग की जांच के घेरे में आई कंपनियों को इन अंतरराष्ट्रीय खेलों के बाबत राजधानी दिल्ली के सौंदर्यीकरण और स्ट्रीट लैम्पों को बदलने आदि का ठेका दिया गया था, लेकिन इन लोगों ने सौंदर्यीकरण के बहाने कालिख पोत दिया और स्ट्रीट लैम्पों के उजाले की आड़ में अंधेरगर्दी मचाकर रख दी। देश वासियों की गाढ़ी कमाई के पैसे से देश की इज्जत और शान की खातिर कराए गए राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी के बहाने लूट-खसोट मचाने वालों को क्या देशभक्त कहा जा सकता है? असल में भ्रष्टाचारी पैसे के पिशाच होते हैं, जो सिर्फ देश और देशवासियों का खून चूसना जानते हैं। चूंकि इस महा भ्रष्टाचार की जांच प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई, केंद्रीय सतर्कता आयोग के साथ ही प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त विशेेष समिति भी कर रही है, इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बहुस्तरीय जांच में उन सभी कसूरवारों की गरदन फंसेगी, जो भ्रष्टाचार के समंदर में मगरमच्छ की तरह डुबकी लगाते आए हैं। जांच एजेंसियों के साथ ही सरकार से भी आम नागरिक की यही अपेक्षा है कि इस महाघोटाले में दूध का दूध और पानी का पानी होने तक पूरी मुस्तैदी बनाए रखे। ऐसा न हो कि चार-छह महीने में कोई नया घोटालेबाज भ्रष्टाचारी सामने आ जाए और कामनवेल्थ खेलों में हुए घोटाले को धकेलकर पीछे कर दे। वैसे भी अगर कामनवेल्थ खेल देश की प्रतिष्ठा से जुड़े हुए थे, जैसा कि सरकार ने कहा था तो यह भी सरकार की ही जवाबदेही है कि इसके आयोजन में गड़बड़ियां और वित्तीय घपलेबाजी करने वालों की प्रामाणिक तौर पर पहचान करके उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलाए , चाहे वे कितने भी ऊंचे रसूख वाले लोग हों। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर कराई जा रही बहुस्तरीय जांच की साख का मामला है। यह भ्रष्टाचार एक देश विरोधी कार्य है, जिसमें लिप्त लोगों को सजा मिलनी ही चाहिए।
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