अरविन्द चतुर्वेद
आजकल इकहरे चेहरे से लोगों का काम ही नहीं चलता, और फिर राजनीति में तो पूछना ही क्या! पारदर्शिता की बातें तो खूब की जाती हैं, लेकिन चेहरे पर चेहरा चढ़ा रहता है। कमाल यह कि राजनीति करने वाले अपने हर चेहरे को असली चेहरे की तरह पेश करते हैं। अभी कल तक कांग्रेस के प्रवक्ता रहे अभिषेक मनु सिंघवी को ही लीजिए। उनका एक चेहरा पार्टी के प्रवक्ता के अलावा नामी वकील का भी है और जाहिर है कि वकील होने के नाते वे अपने किसी भी मुवक्किल के साथ कोर्ट में खड़े हो सकते हैं- उसके बचाव में दलीलें भी दे सकते हैं। लेकिन ठीक इसी जगह यदि वही वकील किसी राजनीतिक दल का प्रवक्ता या प्रतिनिधि चेहरा भी होता है तो उससे अगर पारदर्शिता और नैतिकता की अपेक्षा न भी की जाए तो कम से कम पार्टी के सिद्धांतों और नीतियों के लिए प्रतिबद्धता की अपेक्षा तो रहती ही है। अभिषेक मनु सिंघवी का यही वकील वाला चेहरा केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए अचानक इतना असुविधा जनक और धर्म संकट में डालने वाला साबित हुआ है कि उन्हें पार्टी प्रवक्ता क ी भूमिका से बेदखल कर दिया गया। वैसे दो चेहरे रखने वाले सिंघवी एक तरह से न घर के हुए, न घाट के। क्योंकि केरल में भूटान लॉटरी के एक घोटालेबाज एजेंट की तरफ से केरल सरकार के खिलाफ मुकदमा लड़ने का मामला जब उजागर हुआ और सिंघवी पर दबाव पड़ा तो एक ओर तो उन्होंने मुकदमे से अपने को पीछे खींच लिया, दूसरी ओर जब कांग्रेस की केरल इकाई की ओर से पार्टी आला कमान पर दबाव बढ़ा तो धर्म संकट की हालत में सिंघवी की कांग्र्रेस के प्रवक्ता पद से भी छुटूटी हो गई। इसी को कहते हैं- दुविधा में दोऊ गए, माया मिली न राम। जरा याद कीजिए कि कांग्रेस के प्रवक्ता के बतौर अभिषेक मनु सिंघवी पत्रकारों को शेर ओ शायरी, कानून की धाराओं का हवाला देकर तर्कसंगत ढंग से विभिन्न मुदूदों पर कितनी कुशलता व प्रखरता से जवाब देते थे और पार्टी का पक्ष रखते थे। मगर उन्होंने वकील के बतौर जो कुछ किया, उसे कांग्रेस पचा नहीं सकती थी। एक आदमी भारत के सबसे घनिष्ठ मित्र व छोटे-से देश भूटान की लॉटरी का भारत में ठेका लेता है और देखते ही देखते एक छोटे-से दुकानदार से भूटान को ठग कर खरबपति बन जाता है और जब भूटान सरकार केरल उच्च न्यायालय में उसके खिलाफ मामला दायर करती है तो बचाने के लिए भारत सरकार का नेतृत्व कर रही पार्टी का प्रवक्ता अपने वकील चेहरे में सामने आ जाता है। जैसी कि खबर है वकील सिंघवी की फीस 20 करो.ड रूपए तय हुई थी, लेकिन पैसे का पता नहीं उन्हें मिले या नहीं, हां चेहरे पर चेहरा रखने की दुविधा में उनकी राजनीति जरूर ध्वस्त हो गई। दिवंगत लक्ष्मीमल सिंघवी सरीखे संविधान के बड़े जानकार वकील और सादगी पूर्ण ढंग से रहने वाले शख्स के बेटे अभिषेक मनु सिंघवी को असल में उनका शानो-शौकत में डूबा अहंकार पूर्ण दोहरा व्यक्तित्व ही ले डूबा। आखिर केरल सरकार की शिकायत को प्रधानमंत्री कार्यालय ने गंभीरता से लिया और केरल में अगले वर्ष होनेवाले चुनाव में फजीहत को टालने की लाचारी में कांग्रेस आला कमान को अभिषेक मनु सिंघवी की प्रवक्ता पद से छुटूटी करनी पड़ी। इस संदर्भ में अगर कोई याद करना चाहे तो देश के दूसरे बड़े वकील राम जेठमलानी को भी याद कर सकता है, जिनका वकील और राजनेता वाले दोनों चेहरे भाजपा को पर्याप्त धर्म संकट में डालते आए हैं।
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