अरविन्द चतुर्वेद :
उत्तर भारत की जीवन रेखा और तकरीबन 45 करोड़ भारतीयों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अन्न-जल दे-दिलाकर उनका भरण-पोषण करने वाली गंगा नदी की लगातार बिगड़ती सेहत दुरूस्त करना केंद्र से लेकर सम्बंधित राज्य सरकारों के लिए कई दशकों से लगातार एक चुनौती है। पौराणिक काल से लेकर आज की उत्तर आधुनिक इक्कीसवीं सदी में भी गंगा का धार्मिक व सांस्कृतिक प्रवाह भारतीय जनमानस में अविरल भले ही हो, लेकिन भौतिक सच्चाई तो यही है कि बुरी तरह प्रदूषित इस पवित्र नदी का पानी आचमन लायक नहीं रह गया है। ैकहीं-कहीं नदी का पानी इस कदर प्रदूषित हो चुका है कि आदमी नहाए तो उसे चर्मरोग हो जाए। प्रदूषित गंगा नदी अपने जल-जीवों को भी जीवन दे पाने में कई स्थानों पर फेल साबित हुई है। यह ऐसी कड़वी सच्चाई है, जो गंगा को देवी और मां मानने वाले सरल हृदय धार्मिक लोगों को भी कष्ट पहुंचाती है और प्रकृति व पर्यावरण से प्रेम करने वाले आधुनिक, पढ़े-लिखे लोगों को भी। लेकिन जिस तरह कहीं न कहीं हमारे जंगलात के महकमे में एक बेईमानी है कि वनों की सुरक्षा और संवर्द्धन पर हर साल करोड़ों रूपए उड़ाने के बावजूद जंगल खत्म होते गए, कुछ उसी तरह गंगा समेत कई दूसरी नदियां भी प्रदूषण नियंत्रण की तमाम हवाई कसरत के बावजूद अपना प्राकृतिक स्वास्थ्य हासिल नहीं कर पाइं। केवल गंगा और यमुना की ही बात की जाए तो अबतक एक्शन प्लान के नाम पर हजारों करोड़ रूपए पानी में बहाए जा चुके हैं, मगर यहां भी एक बेईमानी है कि इन नदियों का प्रदूषण कम होने के बजाय बढ़ता गया है। हमारी संस्कृति और जीवन से जुड़ी ये नदियां दिन पर दिन प्रदूषित क्यों होती गइं और हजारों करोड़ रूपए बहा देने के बाद भी इन्हें स्वच्छ क्यों नहीं बनाया जा सका, दरअसल इसमें कोई गूढ़ रहस्य नहीं है। ऐसा सिर्फ इसलिए हुआ है कि इन दोनों नदियों को प्रदूषित करने वाले सफाई करने वालों पर लगातार भारी पड़ते रहे हैं। राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हों या फिर केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड, गंगा-यमुना में रात-दिन कचरा उगलने वाली औद्योगिक इकाइयों की अनदेखी करके या उनको चेतावनी देकर और बहुत हुआ तो आर्थिक दंड देकर अबतक बख्शती आई हैं। इसका नतीजा ढाक के पात रहा है। अब जाकर मनमानी करने वाली औद्योगिक इकाइयों पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने चाबुक चलाया है। कड़ा रूख अख्तियार करते हुए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ऐसी चार प्रदूषक औद्योगिक इकाइयों को बंद करा दिया है। इसके अलावा एक औद्योगिक इकाई को बंद कर देने का नोटिस दिया है। उदूगम से लेकर मंजिल तक गंगा के समूचे क्षेत्र को तो छोड़िए, केंद्रीय प्रदूषण निगरानी संस्था ने उत्तर प्रदेश में कन्नौज से वाराणसी के बीच पांच सौ किलोमीटर की लंबाई में गंगा के प्रदूषण पर सघन निगरानी के बाद तीन हफ्तों में यह कार्रवाई की है। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि अपने समूचे सफर के दौरान औद्योगिक से लेकर अन्य प्रकार के कितने प्रदूषणों की मार हमारी यह पूज्य पवित्र नदी झेल रही होगी। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पहली बार पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986 की धारा पांच को लागू करते हुए गंगा के अपराधियों पर यह चाबुक चलाया है। यही नहीं, पर्यावरण मंत्री के निर्देश पर गंगा की स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए कानपुर की 402 चमड़ा इकाइयों की भी जांच होनी है। असल में अब इन नदियों को दुर्गति से उबारने के लिए चाबुक चलाने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं है।
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