बानगी बनारस की (एक)

अरविन्द चतुर्वेद
दुनिया भर में बाजारवाद, भूमंडलीकरण की धूम मची है. इक्कीसवीं सदी उसकी दुन्दुभी बजा रही है. लेकिन अपने बनारस शहर का क्या कीजियेगा! इसके मंदिरों के घंटे-घड़ियाल की आवाज़ आज भी मद्धिम नहीं हुई और कभी-कभी तो इतनी तेज सुनाई देती है कि इक्कीसवीं सदी की दुन्दुभी दब जाया करती है. बनारस के कंधे पर पड़ा उत्तरीय रह-रहकर पुराणों में फहराने लगता है, घाट की सीढियों पर खड़ाऊँ की खटपट सुनाई पड़ती है, कई बार मोबाइल कान में लगाते वक्त उसमें पंडित जी का जनेऊ फँस जाता है. बीसवीं-इक्कीसवीं की मुठभेड़ जारी है - कोई उन्नीस नहीं पड़ना चाहता. मुकाबला बराबरी का है. बीसवीं ने रबड़ी-मलाई खाकर, दूध-लस्सी पीकर सेहत बनाई है. चाँद-पुतली की कौव्वाली और हीरा-बुल्लू का बिरहा सुनकर मिजाज बनाया है. आज भी पुरवा बयार के झोंके की तरह मनोज तिवारी और निरहुआ की चुहल उसे मस्ती में सराबोर कर देती है. इक्कीसवीं खाती रहे पिज्जा-बर्गर ! पेप्सी और कोक में दम है तो जरा ले आये किशन महराज का तबला - बजाकर दिखाए बिस्मिल्ला खान साहब की शहनाई ! गिरिजा देवी की गर्वीली आवाज़ कमप्यूटरबाज संगीतकारों को चुनौती देती है - एही ठैयां झुलनी हेरानी हो रामा....ज़रा ढूंढ कर निकालो !
अब लेते हैं एक छोटा-सा ब्रेक
सुबह के आठ बजे हैं. जिन्दगी नें रफ़्तार पकड़ ली है. स्कूल-कालेज के लड़के-लड़कियां साईकिल से, स्कूटी से, ऑटो रिक्शे से चले जा रहे हैं. मोटर साइकिलें-स्कूटर दौड़ रहे हैं. तभी लहुराबीर चौराहे की तरफ से प्रकट होता है दर्जन भर भैसों का झुण्ड. खरामा-खरामा चली आ रही हैं - पगुराती हुई, बीच सड़क पर. दस - पंद्रह मिनट लगते हैं काले रंग का यह चौपाया जुलूस जगतगंज तिराहे से संस्कृत यूनिवर्सिटी की ओर मुड़ जाता है. इस बीच समूचा यातायात बिलबिला रहा है. लोग दायें-बाएं से निकलने की कोशिश में हैं. एक भैंस ने दूसरी भैंस को रगड़ मारी तो वह ठीक से बीच सड़क पर चलने लगी. वाह, क्या नज़ारा है सुबहे-बनारस का ! मगर सांडों का धैर्य तो देखते ही बनता है. वे जगतगंज से धूपचंडी और काटन मिल कालोनी तक की गलियों में चहलकदमी करते मिल जायेंगे. धीर - गंभीर परम वीर सांड ! उनकी बगल से सब्जी वालों के ठेले गुजरते हैं, बच्चे गुजरते हैं, मोहल्ले वाले आते-जाते हैं, लेकिन गजब है सांडों की शालीनता. किसी को नज़र उठाकर घूरते तक नहीं. चुपचाप सदियाँ पार करते चले आ रहे हैं. इक्कीसवीं सदी के उत्तर-आधुनिक योजनाकारों, बनारस की बीच गली में सांड खड़ा है. इसका क्या करोगे ? 
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