बौनों के बीच महापुरुष

अरविन्द चतुर्वेद :
हमारा आचरण इतना क्षुद्रता पूर्ण और व्यक्तित्व इतना बौना होता जा रहा है कि लगता है शायद हम अपने महापुरूषों का सम्मान करने लायक भी नहीं रह गए हैं। कभी राष्ट्रपिता महात्मा गाांधी को पता नहीं क्या समझ कर और किस सनक में खरी-खोटी सुनाई जाती है तो कभी अपने ही प्रेरणा पुरूषों, पुरखों और अग्रजों की पांत में, उनके बगल में अपनी मूर्तियां लगवा कर खुद को "महान"  बना लिया जाता है। इन कारगुजारियों की अपने पक्ष में चाहे कैसी भी व्याख्या कोई करे, लेकिन तमाम पिछड़ेपन और अशिक्षा के बावजूद देश-प्रदेश की जनता इतनी बेवकूफ और भोली नहीं है कि अपने हाथों अपने लिए रची जानेवाली नकली महानता के पीछे छिपी असली क्षुद्रता और बौनापन न पहचान सके। आखिर ऐसे ही बौनेपन के खिलाफ तो लोक प्रचलित मुहावरा है- अपने मुंह मियां मिटूठू बनना! हैरानी तो इस बात पर होती है कि क्या सभी स्मरणीय और वंदनीय महापुरूषों का सम्मान समान भाव और सज्जे हृदय से करना हमें आता ही नहीं। क्या एक महापुरूष के सम्मान के लिए जरूरी है कि दूसरे महापुरूष का अपमान किया जाए? क्या सर्वजन के हित की चिंता सर्वजन की भावनाओं, विचारों और आस्थाओं के अटूट व अनन्य आश्रय बने महापुरूषों को उपेक्षित-अपमानित करके की जा सकती है? उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के गोमती नगर स्थित लोहिया अस्पताल के प्रांगण में स्थापित महान समाजवादी चिंतक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की प्रतिमा तीन सालों से अनावरण की बाट जोहती रही और जो डॉक्टर लोहिया इसी उत्तर प्रदेश क ी माटी के ही सपूत थे, उनके जन्मशती वर्ष में भी यह प्रतिमा सरकारी जड़ता और घोर उपेक्षा के अंधेरे में खामोश पड़ी रही। डॉक्टर राम मनोहर लोहिया देश और प्रदेश के करोड़ों आम लोगों से लेकर बुद्धिजीवियों, लेखकों और विचारकों के भी प्रेरक व्यक्तित्व हैं, इसे क्या उत्तर प्रदेश का मौजूदा निजाम नहीं जानता? फिर ऐसी नौबत क्यों आई कि तीन साल से लोकार्पण के लिए प्रतीक्षित प्रतिमा को लोहिया जयंती पर प्रशासनिक विरोध के बीच समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को ही माल्यार्पण करके प्रतिमा अनावरण की पहल करनी पड़ी। यह ठीक है कि लोहिया की विरासत पर दावा करने वाली समाजवादी पार्टी और इसके अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव से मौजूदा बसपा सरकार की राजनीतिक प्रतिद्वंदिता है, लेकिन इसका मतलब यह कहां होता है कि लोहिया के विचारों और उनके द्वारा लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए किए गए संघषों से प्रभावित आम लोहिया अनुरागियों की भावनाओं की सरकार कद्र न करे! आज हम जिस स्वाधीन देश में सांस ले रहे हैं, आखिर इसी आजादी की लड़ाई में अगस्त क्रांति के नायकों में डॉक्टर राम मनोहर लोहिया भी शुमार हैं। कौन नहीं जानता कि देश की आजादी और लोकतांत्रिक मूल्यों के निर्माण में गांधी-लोहिया-जयप्रकाश-अम्बेडकर-नेहरू-पटेल के साथ ही और-और अनेक महापुरूष एक-दूसरे के पूरक रहे हैं। ये सभी इस स्वाधीनता और लोकतंत्र के स्थपति हैं। इन सबके विचारों के आलोक में ही चलकर हमारा लोकतंत्र नई-नई मंजिलें पा सकता है। मगर गहरे अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि इस नालायकी का क्या किया जाए जो एक महापुरूष का सम्मान दूसरे महापुरूष का अपमान करके ही करना जानती है। यही बौनापन दिन पर दिन लोकतंत्र को अपाहिज बनाता जा रहा है और हमारे महापुरूषों द्वारा देखा गया सर्व समावेशी लोकतंत्र का सपना क्षत-विक्षत पड़ा हुआ है।
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