यह है विकास का कचरा!

अरविन्द चतुर्वेद : हमारी मानसिकता ही कुछ ऐसी बन गई है कि जब आग लगती है, तब कुआं खोदने की तैयारी करते हैं। अब यही देखिए कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मायापुरी इलाके में कचरे में पड़े बेहद खतरनाक कोबाल्ट-60 के विकिरण की चपेट में आकर जब कुछ लोग अस्पताल पहुंच गए और सरकार की खूब किरकिरी हो चुकी तो अपने पर्यावरण और वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने बताया है कि सरकार इलेक्ट्रॉनिक कचरे के निस्तारण के लिए प्रभावी नीति बना रही है। इसका एक मतलब तो यही हुआ कि अब तक बगैर किसी नीति-नियम के हम स्व उत्पादित और विदेशों से आयातित कचरे से देश के शहरों-कस्बों और औद्योगिक इलाकों को पाटते चले आ रहे हैं। सवाल यह है कि राजधानी की मायापुरी में कोबाल्ट-60 के गामा विकिरण की चपेट में आकर आधा दर्जन लोग जो अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं, अगर बच भी गए तो आधुनिक विकास के उपहार के तौर पर तो उन्हें अपाहिज जिंदगी ही मिलेगी! देश में स्क्रैप के बतौर हर साल जहाजों में भर-भरकर न जाने कितना कचरा हमारे देश में आता है और उसे सस्ते में खरीद कर बहुत सारे उद्यमी रिसाइकिलिंग के जरिए गलाकर नई चीजें बाजार में उतार देते हैं। यह ठीक है कि कच्चे  माल के तौर पर इस "सेकेंड हैंड" का इस्तेमाल करके उपयोगी चीजें बना ली जाती हैं और महंगाई के इस जमाने में शायद वे अपेक्षाकृत सस्ती भी होती हैं, मगर उनके साथ जो खतरनाक कचरा है, उसके नियंत्रण और निस्तारण का उपाय पहले से ही करने के बारे में क्यों नहीं सोचा गया है? हमारी निगाह अगर सिर्फ लाभ और कामचलाऊपन पर रहेगी तो मायापुरी जैसे हादसे भला कैसे रूकेंगे। अपने देश में कामकाज का ढरर ही कुछ ऐसा बन गया है। अब सरकार कह रही है कि इलेक्ट्रॉनिक कचरा देश के सामने अहम चुनौती बनता जा रहा है और ऐसे अपशिष्ट के निस्तारण के लिए सरकार प्रभावी नीति बना रही है। पर्यावरण और वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने राज्यसभा में जानकारी दी कि इलेक्ट्रॉनिक कचरे को लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी ने दो सर्वेक्षण किए थे और दोनों इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इलेक्ट्रॉनिक कूड़ा देश के सामने चुनौती बनता जा रहा है। कम्प्यूटर, मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान निश्चित समय के बाद ई-कचरा बन जाते हैं। हम चाहें तो इसे आधुनिक विकास का कूड़ा भी कह सकते हैं। जितना हम विकास करते जा रहे हैं, उतना ही तेजी से यह कूड़ा भी इकटूठा होता जा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सर्वेक्षण पर आधारित अनुमान के मुताबिक 2005 में देश में 1.47 लाख मीट्रिक टन ई-कचरा निकला था और दो साल बाद 2012 तक बढ़कर यह आठ लाख मीट्रिक टन हो जाएगा। अब सरकार इस कचरे के निपटारे को लेकर नीति बना रही है और मंत्री जी का कहना है कि 15 मई तक यह सामने आ जाएगी। फिलहाल तो देश में रिसाइकिलिंग के लिए 14 इकाइयां पंजीकृत हैं, मगर हाल यह है कि कुल इकाइयों में से 85 से 90 फीसदी अवैध हैं। अभी तक तो ऐसा है कि जैसे कोई चुपके से हमारे-आपके घर के सामने कूड़ा फेंक जाता है, वैसे ही विकसित देश आंखों में धूल झोंककर अपना कचरा हमारे यहां खपाए दे रहे हैं।
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