भारत की बढती स्वीकार्यता

अरविन्द चतुर्वेद :
आजकल हमारे विदेश मंत्री एसएम कृष्णा प्रतिनिधि मंडल के साथ अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में हैं। अपनी समकक्ष अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन से हुई मुलाकात और उनके साथ हुई आधिकारिक बातचीत में हिलेरी ने भारत को च्एक उभरती हुई विश्व शक्ति’ कहते हुए इस बात को बहुत जरूरी बताया कि दक्षिण एशिया क्षेत्र की मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए अमेरिका और भारत को दो करीबी सहयोगियों की तरह काम करने की जरूरत है। कहा जा रहा है कि दोनों देशों के बीच यह अपनी तरह की च्पहली रणनीतिक बातचीत’ हो रही है। यही नहीं, अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता के लिए अपने देश के समर्थन का संकेत भी दिया है। कुल मिलाकर यह अच्छी बात है कि अमेरिका अपने लिए भारत को अब अनिवार्य रूप से महत्वपूर्ण मानने और स्वीकारने लगा है, लेकिन भारत के लिए यह कोई बहुत गदगद हो जानेवाली बात नहीं है। भारत अगर विकास करेगा, मजबूत होगा तो अपने बलबूते और अपनी वजह से और तभी उसकी वैश्विक स्वीकार्यता भी बढ़ेगी, वरना किसी का पिछलग्गू दिखते हुए तो न स्वीकार्यता बढ़ाई जा सकती है और न वैश्विक सहयोग पाया जा सकता है। एकध्रुवीय हो चुके विश्व में भी इतना सचेत होकर तो चलना ही पड़ेगा कि और भी च्दुनिया’ है दुनिया में अमेरिका के सिवा। कहने का मतलब यह कि सवा अरब की आबादी वाले दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत को अबतक काफी पहले ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य हो जाना चाहिए था। अगर भारत अबतक सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं हो पाया तो क्या यह कहने की जरूरत है कि इसके पीछे वीटो पावर धारी दादा देशों की अड़ंगेबाजी ही मुख्य वजह रही है। बहरहाल, अगर अमेरिका अब भारत के महत्व को गहराई से समझने लगा है तो बहुत अच्छी बात है- हिलेरी क्लिंटन के मुंह में घी-शक्कर! जहां तक दक्षिण एशियाई क्षेत्र की चुनौतियों का सवाल है, कुछ चुनौतियां अमेरिका और भारत की साझा भी हो सकती हैं, जैसे कि अफगानिस्तान का पुनर्निर्माण और उसे तालिबानी आतंकवाद से मुक्त कराया जाना। इसी तरह भारत के साथ मजबूती से खड़े रहकर अमेरिका एशिया में चीन के बढ़ते वर्चस्व और खुराफातों को नियंत्रित करने में भी एक हद तक मददगार हो सकता है। पड़ोस पोषित आतंकवाद, जिससे भारत एक लम्बे अरसे से आक्रांत है, जो कश्मीर-सीमा की ओर से लगभग स्थाई सरदर्द बना हुआ है और जो अब स्थानिक न रहकर लगभग विश्वव्यापी बन चुका है और अमेरिका को भी गहरा आघात दे चुका है- एक ऐसी चुनौती है, जिसका मुकाबला अमेरिका-भारत साझेदारी में ही नहीं, एक-दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर कर सकते हैं। पड़ोस पोषित इस आतंकवाद की तरफ भारतीय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने बातचीत में हिलेरी क्लिंटन का ध्यान भी दिलाया है। इसलिए अगर अमेरिका मानता है कि भारत एक उभरती हुई वैश्विक ताकत है तो यह जरूरी नहीं होना चाहिए कि भारत-दौरे के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन च्संतुलन’ बनाने के लिए पाकिस्तान जाकर उसके हुक्मरानों के मन-मुआफिक बयान दें और गैर-जरूरी ढंग से पीठ थपथपाएं। अमेरिका और भारत में आपसी समझदारी, सहयोग और किन्हीं मामलों में साझेदारी भी अच्छी बात है, लेकिन कई चुनौतियां और समस्याएं दोनों देशों की अपनी-अपनी भी हैं, इसलिए अनावश्यक हस्तक्षेप से अमेरिका को बचना भी चाहिए। संबंधों की समझदारी यही है।
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