भोपाल त्रासदी का उत्तरकाण्ड

अरविन्द चतुर्वेद : 
भोपाल की औद्योगिक गैस त्रासदी का खलनायक  वारेन एंडरसन हजारों लोगों को मारकर, हजारों की जिंदगी अपाहिज बनाकर और हजारों के भविष्य को बीमार बनाकर शासन-प्रशासन के सुरक्षा कवच की मदद से भोपाल से दिल्ली और फिर दिल्ली से सीधे अमेरिका भाग गया, यह तो एक कहानी है, लेकिन बहुत बड़े जनसंहार के अभियुक्तों के खिलाफ बहुत मामूली-सी दो वर्ष की जमानती सजा के बाद अब विभिन्न माध्यमों से इस त्रासदी के उत्तर कांड की जो कथाएं सामने आई हैं, वह तो और भी ज्यादा त्रासदी पूर्ण हैं। मध्य प्रदेश के तत्कालीन कांगे्रसी मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और कांगे्रस की तत्कालीन केंद्र सरकार पर अमेरिकी दबाव में यमराज एंडरसन को भगाने, सीबीआई द्वारा लचर तरीके से जांच करने, अभियोग की कमजोर धाराएं लगाने और कमजोर पैरवी के कारण सहअभियुक्तों के अदालत में ‘हारकर भी जीत जाने जैसी सहूलियत’ में आ जाने के कारण भुक्तभोगियों के 25 साल पुराने जख्म हरे हो गए हैं। लेकिन क्या गैस त्रासदी के भुक्तभोगियों के जख्म बीते 25 बरसों में एक दिन के लिए भी कभी सूखे हैं? गैस प्रभावित लोग इन बरसों में असाध्य बीमारियों की गिरफ्त में आकर तिल-तिल कर मरते आए हैं, मगर उनके इलाज की जैसी मुकम्मल और सघन व्यवस्था होनी चाहिए, वह इतने बरसों में भी नहीं हो पाई है- यह है भोपाल त्रासदी का उत्तर कांड। पुराने भोपाल के वह इलाके जो यूनियन कार्बाइड कारखाने की गैस की जद में आ गए थे, उनकी जिंदगी आजतक क्यों नरक बनी हुई है? नए भोपाल के स्वर्ग में जो सरकार और प्रशासन बैठा हुआ है, उसके चिराग तले यह नरक का अंधेरा क्यों है? इतना तो तय है कि जिन जिंदगियों को जहरीली गैस के दैत्य ने लील लिया है, उन्हें कोई वापस नहीं ला सकता, मगर बच गई जिंदगियों को बेहतर इलाज और बेहतर जीवन स्थितियां तो मुहैया कराई ही जा सकती हैं। कम से कम राहत और हिफाजत के मामले में तो राजनीति की गुंजाइश नहीं ही खोजी जानी चाहिए। गैसकांड के बाद के 25 बरसों में मध्य प्रदेश के इस राजधानी-शहर में कांगे्रस की भी सरकार रह चुकी है और भाजपा के भी कई मुख्यमंत्री गद्दीनशीन रहे आए हैं, लेकिन गैस के मारे बदनसीबों को बेहतर इलाज और समुचित राहत के लिए किसी ने कुछ खास नहीं किया है। सच पूछिए तो यूनियन कार्बाइड से मिले हुए या वसूले गए नाकाफी मुआवजे के आधे-अधूरे, छीना-झपटी वाले वितरण के अलावा किन्हीं सरकारों ने गैस प्रभावितों के लिए कुछ खास किया ही नहीं है। आज भी गैस पीडि़त-प्रभावित लोग अपनी घायल जिंदगी लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं। दो साल की जमानती मामूली सजा की प्रतिक्रिया में उठे तूफान के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कुछ सदस्यों की कमेटी बनाकर कानूनी पहलुओं की छानबीन के साथ हाईकोर्ट जाने की बात कही तो केंद्रीय विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा कि अभी खेल खत्म नहीं हुआ है और एंडरसन का प्रत्यर्पण कराया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने भी मंत्रियों का एक समूह बनाया, जिसने  भोपाल जाकर गैस पीडि़तों-प्रभावितों की स्थितियों-परिस्थितियों का जायजा लेकर उनको अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। लेकिन एक गैस प्रभावित का सवाल वाकई सबके सामने खड़ा है- अगर हम गैस पीडि़तों की इतनी ही चिंता थी तो किसी पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कभी हमारा जिक्र क्यों नहीं किया?
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