अरविन्द चतुर्वेद :
बचपन कैसे सुरक्षित रहे, बच्चों की दुनिया को कैसे खुशगवार और रचनात्मक बनाया जाए- इसकी चिंता सरकारों को भले ही कम हो और बच्चों की बेहतरी का सारा दारोमदार उनके मां-बाप पर छोड़कर सरकारें निश्चिंत हो जाती हों, लेकिन सियासत करने वाले बच्चों का इस्तेमाल अपनी राजनीति के लिए भी खूब करते हैं। अभी ताजा उदाहरण गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के भविष्य की आशा कहे-समझे जाने वाले नरेंद्र मोदी ने पेश किया है। अपने गृह प्रदेश महाराष्ट्र में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने पार्टी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई पार्टी और उसकी सरकारों के बाबत विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श के लिए, लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना न देखकर दूसरे के फटे में हाथ डालने की अपनी पुरानी आदत के मुताबिक यह उच्च विचार प्रकट किया कि कहा जाता है कि जवाहरलाल नेहरू को बच्चों से बेहद प्रेम था और उनके जन्मदिन को बाल दिवस का नाम दिया गया। बच्चे उन्हें चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे और यह हमारे मन में परोपकारी नेहरू की छवि तैयार करता है। लेकिन उन्होंने बच्चों का क्या भला किया? नरेंद्र मोदी इतने पर ही नहीं रूके, उन्होंने कहा कि बाल दिवस से उन बच्चों की दशा सुधारने में क्या मदद मिली है जिन्होंने गरीबी के साए में अपना बचपन खोया। मोदी का सवाल था कि क्या इससे उन बच्चों के आंसू पोछे जा सकते हैं जिन्हें बाल दिवस पर एक थाली भोजन पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है? नरेंद्र मोदी के इन उच्च विचारों से अव्वल तो यही लगता है, गोया गडकरी ने भाजपा के मुख्यमंत्रियों को देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू के कामकाज की समीक्षा के लिए बुलाया हो! आखिर आजादी के तुरंत बाद खड़े हो रहे देश के प्रधानमंत्री के कामकाज के मूल्यांकन की आज क्या जरूरत है, यह शायद मोदी ही जानते होंगे। असल में होता यह है कि जब लोग वर्तमान की चुनौतियों और समस्याओं का मुकाबला नहीं कर पाते तो अतीत की गुफाओं में झांकने लगते हैं। शायद मोदी ने भी यही रास्ता चुना हो। जबकि आज के भारत की अपनी अनेक समस्याएं हैं, जिनमें एक बड़ी आबादी का देश होने के नाते स्वाभाविक तौर पर बच्चों के लिए भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। दूसरी बात यह भी है कि नरेंद्र मोदी अपनी प्रतिद्वंदी पार्टियों पर राजनीतिक बयानबाजी के लिए भाजपा में अधिकृत संगठन के नेता नहीं, बल्कि एक राज्य के जिम्मेदार मुख्यमंत्री हैं और बाकी देश की तरह गुजरात में भी "बच्चों की दुनिया" बहुत खुशहाल नहीं है। गुजरात में भी, खासकर आदिवासी इलाकों में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का भगवान ही मालिक है और गैर कानूनी बालश्रम की समस्या भी काफी गहरी है। दरअसल, बच्चों का दुर्भाग्य यह है कि उनकी मासूमियत का इस्तेमाल अपने देश में खूब होता है। बाजार तो बच्चों का इस्तेमाल एक अरसे से ही अबाध ढंग से करता आ रहा है, जिसका प्रमाण यह है कि बच्चे उन उत्पादों के विज्ञापनों में भी छाए रहते हैं, जो चीजें बच्चों के काम की नहीं होतीं। अब नरेंद्र मोदी ने भाजपा अध्यक्ष की बुलाई पार्टी मुख्यमंत्रियों की बैठक में नेहरू के बहाने बच्चों के सियासी इस्तेमाल का श्रीगणेश कर दिया है। शायद नरेंद्र मोदी यह भी भूल रहे हैं कि उनके मुख्यमंत्रित्व काल में ही गुजरात दंगों में बच्चे हिंसा के शिकार भी हुए थे और बड़ी तादाद में अनाथ भी हुए। बहुत स्वाभाविक है कि बच्चों को हथियार बनाकर नेहरू पर किए गए प्रहार का कांग्रेस की तरफ से तीखा जवाब दिया गया। शायद बिना मौके के छेड़े गए इस बच्चा-राग का मकसद भी यही रहा हो। फिर भी बच्चों का इस तरह सियासी इस्तेमाल करने से राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को बचना चाहिए, क्योंकि बच्चे देश का भविष्य ही नहीं, भविष्य की आंख भी हैं।
3 comments: on "नरेंद्र मोदी का बच्चा-राग"
यानी नेहरु के पापों को गिनाना भी पाप है?
गड़े मुर्दे उखाड़ने से कोई लाभ नहीं
we should look to FUTURE
बच्चों का राजनीतिक उपयोग तो नेहरू ने किया है. बच्चे उन्हे ही प्यारे थे. आपको प्यारे नहीं है? वास्तव में बच्चे भविष्य का वोटर होता है, चाचा ने अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए उनका उपयोग किया है.
मोदी ने सही कहा है. चोचले बाजी छोड़ काम करो. लोग बिना किसी बाल दिन के शास्त्रीजी व पटेल को अच्छा नेता मानती है. क्योंकि उन्होने काम किया.
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