क्या हमाम में सभी नंगे हैं-इसी मुहावरे से काम चलाते रहेंगे?

अरविन्द चतुर्वेद :
संसद से सड़क तक भ्रष्टाचार-त्रिकोण की ही गूंज है। इस गूंज में बिहार विधान सभा चुनाव के आखिरी चरण की चर्चा समेत तमाम बड़ी घटनाएं तक धुंध और धुंधलके में ढक गइं। मसलन, असम में नए सिरे से बोडो उग्रवादियों की हिंसा भी लोगों और मीडिया की आंखों से ओझल होकर रह गई, जिसके शिकार हिन्दीभाषी खासकर बिहारी लोग हुए हैं और अब वहां से दहशत के मारे पलायन के बारे में सोच रहे हैं। भ्रष्टाचार-त्रिकोण यानी आदर्श सोसायटी-कामनवेल्थ खेल-2जी स्पेक्ट्रम ने पांच दिनों से संसद को लगभग ठप्प करके रखा है। मंत्री पद से हटने या हटाए जाने के बावजूद पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री ए. राजा की जान सस्ते में छूटती नजर नहीं आ रही, बल्कि सच कहिए तो राजा की कारगुजारी को लेकर केंद्र की संप्रग सरकार और खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जान सांसत में पड़ी हुई है। विपक्ष इन भ्रष्टाचारों की संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी से जांच कराए जाने पर अड़ा हुआ है। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता और केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की संसद की कार्यवाही चलने देने के लिए विपक्षी दलों से मिलकर कोई राह निकालने की कोशिश भी फिलहाल नाकाम हुई है। पहले तो मुखर्जी ने कड़ा रूख अपनाते हुए यह कहा कि कैग की रिपोर्ट संसद की लोकलेखा समिति को सौंप दी जाएगी और जेपीसी की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन विपक्षी दलों के प्रतिनिधि नेताओं से मुलाकात के बाद उनके रूख को देखते हुए उन्होंने कहा है कि कोई रास्ता निकालने के लिए वे प्रधानमंत्री से बात करके गुरूवार से पहले सरकार का पक्ष सामने रखेंगे। फिलहाल, इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी 2जी स्पेक्ट्रम मामले पर सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका की सुनवाई करते हुए इस बात पर हैरानी जताई है कि इस मामले में स्वामी के लिखे शिकायती पत्र का प्रधानमंत्री कार्यालय ने कोई संज्ञान क्यों नहीं लिया और राजा के खिलाफ कार्रवाई करने में इतनी देर क्यों की गई। इस मामले में प्रधानमंत्री की तरफ से कोई जवाब न देकर खामोशी बरते जाने पर भी सुप्रीम कोर्ट को हैरानी हुई है। दूसरी तरफ देखें तो गठबंधन की मजबूरी और दबाव के चलते राजा के खिलाफ कदम उठाने में हीला-हवाली और देरी की वजह से संप्रग सरकार की हालत गुनाहे-बेलज्जत सरीखी साबित हुई है और विपक्ष इसे देर आयद-दुरूस्त आयद मानने को तैयार नहीं है। दरअसल, सत्ता से इंधन पाकर होनेवाला भ्रष्टाचार, चाहे किन्हीं सरकारों के कार्यकाल में हो, देश के जनमानस को इतना उद्वेलित और हताश कर देता है कि लोग नाउम्मीद होकर इसे नियति मान लेते हैं। यह भी एक कारण है कि जब एक तरफ से भ्रष्टाचार की बात उठती है तो जवाबी तौर पर दूसरी तरफ के भ्रष्टाचार की चर्चा छेड़ दी जाती है। लेकिन सवाल तो यह है कि क्या यह कहने से कि मेरी ही नहीं, तेरी कमीज भी गंदी है, सफाई हो सकती है? क्या हमाम में सभी नंगे हैं- हम इसी मुहावरे से काम चलाते रहेंगे?
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