बाज़ार के इस भव्य चमक-दमक भरे सौन्दर्य अभियान ने एक चीज जो पैदा की है, वह है व्यक्तित्व की एकरूपता. चाहे तो इसे एकरसता कह सकते हैं. जैसे सभी बड़े होटलों के प्रशिक्षित बावर्ची एक जैसा खाना बनाते हैं और हम चाहे दिल्ली में खाना खाएं या भोपाल-आगरा-बनारस में, सभी जगह एक ही स्वाद मिलता है - जायके में अपनी-अपनी विशेषता और विविधता नहीं होती, वैसे ही प्रायोजित और परिष्कृत सौन्दर्य के कारखाने के खांचों से एक जैसी सजधज के युवक-युवतियां कोलकाता से कानपुर तक, बनारस से बेंगलोर तक और गोरखपुर से ग्वालियर तक नज़र आते हैं. कह सकते हैं कि यह ग्लोबल फैशन की ऐसी एकरंगी और अनुकरणवादी प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्तित्व विशिष्टता और अद्वितीयता विसर्जित हो जाती है और तमाम चमक-दमक के बावजूद इकहरे व्यक्तित्व की भीड़ लग जाती है - भेड़ियाधसान पैदा होता है.
इसके बावजूद सौन्दर्य-बाज़ार का यह फैशन अभियान सौन्दर्य की सारी सीढियों को ढहा नहीं पाया है, भले ही वह ऊपर से नीचे उतरता जा रहा हो. साड़ी, सलवार-कुरता, चोली-घाघरा जैसी देसी पोशाकों का परचम आज भी फहरा रहा है. पूर्वोत्तर के मणिपुर, नागालैंड, असम, अरुणाचल की जनजातियों और देश के कई अंचलों लोगों का पारंपरिक सौन्दर्यबोध आज भी जाग्रत है और पर्याप्त आधुनिक शिक्षा-दीक्षा के बावजूद वे अपने व्यक्तित्व की वेशभूषा और श्रृंगार परक विशिष्टताओं को बड़े चाव और लगाव के साथ अपनाए हुए हैं.
आँगन के पार द्वार : आज की स्त्री के लिए यह नहीं कहा जा सकता कि सजना है उसे सजना के लिए! गहरी सौन्दर्य-चेतना के कवि जयशंकर प्रसाद का सवाल " हे लाज भरे सौन्दर्य बता दो, मौन बने रहते हो क्यों? " आज की स्त्री के लिए बेमानी है. वह लाजवंती रहकर अपना व्यक्तित्व नहीं बना सकती. अब वह अलस, मंथर,सकुचाये भावों वाली
कामिनी-भामिनी नहीं है. वह स्कूटी से फर्राटा भरते हुए कालेज जाती है, नौकरी करती है, खेल के मैदान में उसने बुलंदियां पाई हैं. इसलिए वह चंचल है, बोल्ड है. आत्मविश्वास से भरा, उद्दाम, सक्रिय, उल्लासपूर्ण व्यक्तित्व है उसका. लेकिन उसका यह आकर्षक व्यक्तित्व कर्म- सौन्दर्य से निखार पाया है - महज फैशन और सौन्दर्य के बाज़ार से नहीं !
- अरविन्द चतुर्वेद
4 comments: on "सजना है मगर जीवन के लिए"
सटीक आलेख.
क्या कहा जाए ??
very nice..sir ji
very good sir
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