मुख्यमंत्री के चरण रज

अरविन्द चतुर्वेद
भक्ति की अपनी एक परंपरा है, जिसमें अपने गुरू या आराध्य के चरण रज माथे से लगाकर कोई भक्त अपने को धन्य समझता है और अपने आराध्य को स्वामी और खुद को उसका दास मानता है। इसी तरह सामंती जमाने से चली आ रही स्वामिभक्ति की परंपरा भी काफी लंबी है और सेवक बेचारे मालिक के पांव-पनही पर अपनी पगड़ी रखकर सेवकाई करते आए हैं। लेकिन यह जो हमारा लोकतंत्र है और जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की सरकार चल रही है, उसकी मुखिया के पांव-पनही की धूल अगर कोई अधिकारी अपनी जेब से रूमाल निकाल कर समेट ले और उस अमूल्य चरण रज को अपनी जेब में संचित करके कृतार्थ हो जाए तो इस कृत्य को किस कोटि में रखा जा सकता है? मुख्यमंत्री मायावती के औरैया दौरे के वक्त पुलिस के बड़े अफसर जो उनके प्रमुख सुरक्षा अधिकारी हैं, उस पद्म सिंह ने यह अदूभुत पराक्रम कर दिखाया है। अगर इसे प्रतीक मानें तो क्या इसमें कोई शक है कि प्रदेश की नौकरशाही बसपा सरकार की चेरी बन गई है। सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी का जो चुनाव चिन्ह हाथी अब गणेश बन गया है, कुछ अधिकारी और पुलिस विभाग के लोग अपना वास्तविक कामकाज छोड़कर इसके मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की वास्तव में गणेश परिक्रमा ही कर रहे हैं और इसका पुरस्कार लाभ ले रहे हैं। ऐसे अधिकारियों का मनोबल क्या उनकी दासवृत्ति के चलते सियासत के पांव के नीचे नहीं कुचला जा रहा है? तभी तो बलात्कार व यौन शोषण और महिला उत्पीड़न के आरोपी विधायकों और मंत्रियों का पुलिस व नागरिक प्रशासन हर संभव ढाल बन जाता है और पीड़िताओं को ही जेल में ठंूस दिया जाता है। गौरतलब है कि गत रविवार को औरैया में विकास कायों का जायजा लेने के लिए मुख्यमंत्री मायावती के अछलदा ब्लाक के नौनीपुर गांव पहुंचने पर उनके सुरक्षा प्रमुख पदूम सिंह ने अपने रूमाल से उनके जूते साफ किए थे। कुछ टेलीविजन चैनलों पर इसकी फुटेज भी दिखाई गई। कोई ताज्जुब नहीं कि स्वामिभक्ति की इस होड़ में इस घटना से शमिंदा होने के बजाय गणेश परिक्रमा को आतुर प्रदेश के दूसरे अफसर प्रेरणा लेने लगें। उत्तर प्रदेश में नौकरशाही क्यों विकास को जमीनी अमली जामा पहनाने के बजाय कागजी घोड़े दौड़ा रही है और कानून-व्यवस्था अराजकता का शिकार है, यह आसानी से समझा जा सकता है। मुख्यमंत्री का चरण रज लेने की यह परंपरा दरअसल पांवपुजाऊ उसी ब्राrाणवाद का नव संस्करण है, जिसकी आलोचना व निंदा हमारे संविधान निर्माता और खुद बसपा के प्रेरणा पुरूष बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने की थी। क्या गजब है कि सत्ता के सिंहासन ने समूचे विचार दर्शन को सिर के बल खड़ा करते हुए नव ब्राrाणवाद की नींव ही नहीं डाली है बल्कि भव्य भवन खड़ा कर लिया है। यह लोकतंत्र की मर्यादा और सरकार के आचरण दोनों के लिए वास्तव में शर्मनाक है।

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