अरविन्द चतुर्वेद
सोनागाछी जिस्म बाजार के संचालन का सारा दारोमदार बाड़ी वाली बऊ दी पर होता है। कुछ तो बऊ दी किस्म की महिलाओं की अपनी बाड़ी है और बहुतेरी बऊ दी मकानों की पुरानी किराएदार हैं। जिस्म बाजार में समय-समय पर पुलिस की होनेवाली छापेमारियों से निपटना, पकड़ी गई लड़कियों को छुड़ाकर वापस लाना, ग्राहकों और गुंडे-बदमाशों की ज्यादतियों से अपनी लड़कियों को बचाना- यह सारा सिरदर्द बऊ दी का है। बऊ दी इस सिरदर्द के बदले में लड़कियों की कमाई में हिस्सा लेती हैं।
यह बताते समय दलाल मंगला प्रसाद के होठों पर बऊ दी के लिए एक व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट चिपकी रहती है। वह कहता है- क्या है कि साहब, ये जो बऊ दी लोग हैं न, इनको भी तो सबकुछ का परेटिकल एक्सपीरियन(प्रैक्टिकल एक्सपीरियंश) होता है, न। किसी बराबर आनेवाले ग्राहक को तजबीज कर उसके साथ एक तरह से घर बसा लेती हैं।
- क्या बऊ दी लोग शादीशुदा होती हैं?
इस सवाल पर ठहाके लगाकर हंस पड़ता है मंगला। हंसते-हंसते कहता है- धत्त तेरे की। अरे, उसे क्या कहेंगे-बऊ दी रखैला रखती हैं, रखैला। कोई टैक्सी वाला होता है, कोई चाय-पान की गुमटी वाला और कोई छोटा-मोटा दुकानदार। सब साला मउगा होता है, साहब। बाकी क्या है कि हफ्ता में एक-दो बार बऊ दी का आदमी जरूर आता है।
सोनागाछी की बऊ दी महिलाओं के बच्चे भी हैं- लड़के-लड़कियां। वे बच्चों को स्कूल भेजती हैं। बाड़ी में मास्टर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने आते हैं। जाहिर है कि बऊ दी के मन में यह इच्छा जरूर है कि उनके बच्चे किसी तरह पढ़-लिखकर सोनागाछी जिस्म बाजार की चौहद्दी पार करके दूसरी बेहतर दुनिया में शामिल हो जाएं।
इस जिस्म बाजार की लड़कियों की हैसियत भी तीन तरह की है। पांच सौ से हजार तक ऐसी लड़कियां हैं, जिन्हें दलाल मंगला प्रसाद हाई क्लास कहता है। इनकी फीस ढाई सौ से तो कतई कम नहीं है और ऊपर हजार-डेढ़ हजार तक जा सकता है. गिफ्ट वगैरह अलग से. हाई क्लास लड़कियां शहर के होटलों में भी जाती हैं, खाली फ़्लैट वाले तनहा गुणग्राहक के घर भी. कुछ ऐसी भी हैं जो किसी की निजी हैं. लेकिन अगर सचमुच वे वफादारी के साथ निजी बनी रहें, तब फिर क्या जिस्म बाज़ार का रिवाज नहीं टूटेगा? बेवफाई और फरेब पर ही तो टिका है यह जिस्म बाज़ार. मंगला बताता है - जब लड़की का परमानेंट आदमी किसी दिन नहीं आता तो महँगी फीस वाला टेम्परेरी ग्राहक भी चल जाता है.
सोनागाछी की हाई क्लास लड़कियों के पास एक-एक साफ़-सुथरे अच्छे कमरे हैं और टीवी-वीडियो जैसी मनोरंजन की सुविधाएं भी. खाना बनाने, खिलाने के लिए नौकरानी भी है. बाज़ार से रोजमर्रा की खरीदारी के लिए नौकर भी. ये लड़कियां उत्तर प्रदेश के आगरा और आसपास के इलाके की हैं. कह सकते हैं कि ये जानबूझ कर पेशेवर बनी हैं. मंगला बताता है- ये लड़कियां मां-बाप, भाई-बहनों के लिए अपने देस मनिआर्दर और बैंक ड्राफ्ट के जरिये पैसे भेजती हैं. बीच-बीच में इनसे मिलने घरवाले भी आया करते हैं. सोनागाछी की हाई क्लास लड़कियां कम-से-कम हाई स्कूल तक जरूर पढ़ी-लिखी हैं. इन्होने अपनी कमाई के पैसे कुछ दूसरे कारोबार में भी लगा रखा है. मसलन, कुछ हाई क्लास लड़कियों की महानगर में टैक्सियाँ भी चलती हैं.
..... जारी
सोनागाछी जिस्म बाजार के संचालन का सारा दारोमदार बाड़ी वाली बऊ दी पर होता है। कुछ तो बऊ दी किस्म की महिलाओं की अपनी बाड़ी है और बहुतेरी बऊ दी मकानों की पुरानी किराएदार हैं। जिस्म बाजार में समय-समय पर पुलिस की होनेवाली छापेमारियों से निपटना, पकड़ी गई लड़कियों को छुड़ाकर वापस लाना, ग्राहकों और गुंडे-बदमाशों की ज्यादतियों से अपनी लड़कियों को बचाना- यह सारा सिरदर्द बऊ दी का है। बऊ दी इस सिरदर्द के बदले में लड़कियों की कमाई में हिस्सा लेती हैं।
यह बताते समय दलाल मंगला प्रसाद के होठों पर बऊ दी के लिए एक व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट चिपकी रहती है। वह कहता है- क्या है कि साहब, ये जो बऊ दी लोग हैं न, इनको भी तो सबकुछ का परेटिकल एक्सपीरियन(प्रैक्टिकल एक्सपीरियंश) होता है, न। किसी बराबर आनेवाले ग्राहक को तजबीज कर उसके साथ एक तरह से घर बसा लेती हैं।
- क्या बऊ दी लोग शादीशुदा होती हैं?
इस सवाल पर ठहाके लगाकर हंस पड़ता है मंगला। हंसते-हंसते कहता है- धत्त तेरे की। अरे, उसे क्या कहेंगे-बऊ दी रखैला रखती हैं, रखैला। कोई टैक्सी वाला होता है, कोई चाय-पान की गुमटी वाला और कोई छोटा-मोटा दुकानदार। सब साला मउगा होता है, साहब। बाकी क्या है कि हफ्ता में एक-दो बार बऊ दी का आदमी जरूर आता है।
सोनागाछी की बऊ दी महिलाओं के बच्चे भी हैं- लड़के-लड़कियां। वे बच्चों को स्कूल भेजती हैं। बाड़ी में मास्टर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने आते हैं। जाहिर है कि बऊ दी के मन में यह इच्छा जरूर है कि उनके बच्चे किसी तरह पढ़-लिखकर सोनागाछी जिस्म बाजार की चौहद्दी पार करके दूसरी बेहतर दुनिया में शामिल हो जाएं।
इस जिस्म बाजार की लड़कियों की हैसियत भी तीन तरह की है। पांच सौ से हजार तक ऐसी लड़कियां हैं, जिन्हें दलाल मंगला प्रसाद हाई क्लास कहता है। इनकी फीस ढाई सौ से तो कतई कम नहीं है और ऊपर हजार-डेढ़ हजार तक जा सकता है. गिफ्ट वगैरह अलग से. हाई क्लास लड़कियां शहर के होटलों में भी जाती हैं, खाली फ़्लैट वाले तनहा गुणग्राहक के घर भी. कुछ ऐसी भी हैं जो किसी की निजी हैं. लेकिन अगर सचमुच वे वफादारी के साथ निजी बनी रहें, तब फिर क्या जिस्म बाज़ार का रिवाज नहीं टूटेगा? बेवफाई और फरेब पर ही तो टिका है यह जिस्म बाज़ार. मंगला बताता है - जब लड़की का परमानेंट आदमी किसी दिन नहीं आता तो महँगी फीस वाला टेम्परेरी ग्राहक भी चल जाता है.
सोनागाछी की हाई क्लास लड़कियों के पास एक-एक साफ़-सुथरे अच्छे कमरे हैं और टीवी-वीडियो जैसी मनोरंजन की सुविधाएं भी. खाना बनाने, खिलाने के लिए नौकरानी भी है. बाज़ार से रोजमर्रा की खरीदारी के लिए नौकर भी. ये लड़कियां उत्तर प्रदेश के आगरा और आसपास के इलाके की हैं. कह सकते हैं कि ये जानबूझ कर पेशेवर बनी हैं. मंगला बताता है- ये लड़कियां मां-बाप, भाई-बहनों के लिए अपने देस मनिआर्दर और बैंक ड्राफ्ट के जरिये पैसे भेजती हैं. बीच-बीच में इनसे मिलने घरवाले भी आया करते हैं. सोनागाछी की हाई क्लास लड़कियां कम-से-कम हाई स्कूल तक जरूर पढ़ी-लिखी हैं. इन्होने अपनी कमाई के पैसे कुछ दूसरे कारोबार में भी लगा रखा है. मसलन, कुछ हाई क्लास लड़कियों की महानगर में टैक्सियाँ भी चलती हैं.
..... जारी
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