अरविन्द चतुर्वेद
एक शाम हम तीन दोस्त बड़ी हिम्मत जुटाकर बदनाम बस्ती सोनागाछी की निषिद्ध गली के मुहाने पर खड़े हुए। इरादा था कि गली के इस पार से सेंट्रल एवेन्यू तक निकल कर पूरी गली का जायजा लिया जाए। इससे पहले हममें से कोई भी इस गली से होकर गुजरा नहीं था।
जबरन चेहरे पर सहजता लाने की कोशिश करते हुए हम गली में ऐसे घुसे, जैसे किसी भी गली या सड़क से आम तौर पर राहगीर गुजरते हैं। सोनागाछी की गली में मेला-सा लगा था। सड़क के दोनों किनारे पर बदन दिखाऊ पोशाकों में, चेहरे पर जरूरत से ज्यादा क्रीम-पावडर पोते अलग-अलग उम्र की किशोरियां, युवतियां और तमाम कोशिश के बावजूद बढ़ती उम्र की निशानियां न छिपा पाती अधेड़ औरतें।
यह जिस्म का बाजार है। ये औरतें-लड़कियां आपस में बातचीत भी कर रही हैं और आने-जाने वालों को तरह-तरह के इशारे भी। सारा माहौल रोशनी में जगमग है। छनती प्याज की पकौडिय़ों और आलूचाप की वजह से समूची गली में जलते तेल और बेसन की गंध समाई हुई है। पकौडिय़ों और पान-सिगरेट की इन छोटी-मोटी दुकानों पर दो-तीन दिनों की बढ़ी हुई दाढ़ी वाले तमाम लोग अड्डे जमाए हुए हैं।
इनमें कुछ लोग इधर-उधर चहलकदमी भी कर रहे हैं। सबकी निगाहें गली में आने-जाने वालों पर टिकी हैं। अजीब चमक है इन निगाहों में। आपसे अगर इनकी नजर मिली तो लगेगा जैसे निगाहों के जरिए आपके भीतर कुछ टटोला जा रहा है।
निगाहें हमारी भी मिलीं और उधर से इशारे भी हुए। पर हम बराबर सहज बने रहने की कोशिश के साथ यूं चलते रहे, जैसे इस दुनिया से हमारा कोई वास्ता नहीं है।
एक गुमटी के सामने सिगरेट सुलगाने के लिए हम खड़े ही हुए थे कि आजू-बाजू में तीन लोग आकर खड़े हो गए। हमारे कुछ बोले बिना ही किसी होटल के बेयरे की तरह उनका मुंहजबानी मेनू पेश हो गया-
- चलेगा, साब?
- बिल्कुल नया, ताजा माल है।
- एक बार देख तो लीजिए, तबियत खुश हो जाएगी।
फिर इसके बाद देश के जितने प्रदेशों के नाम उन्हें मालूम थे, उन सबका उन्होंने जाप कर डाला- बंगाली है, बिहारी है, यूपी है, पंजाबी है, मद्रासी है। नेपाली भी है। जो आपको पसंद हो, साहब।
इतना सुनते ही मेरे दोनों साथियों के चेहरे पर घबराहट उभर आई। अब वे जल्दी से जल्दी इस गली से निकल जाना चाहते थे। मैंने बात जारी रखने के खयाल से पूछा- कितने पैसे लगेंगे?
जवाब मिला- पचास रुपए से लेकर ढाई सौ तक। जैसी चीज, वैसा दाम। इससे ऊपर की भी हैं।
अब उनसे पीछा छुड़ाने के लिए काफी भरोसा दिलाते हुए मुझे कहना पड़ा- ठीक है, मैं अपने साथियों को सेंट्रल एवेन्यू तक छोड़कर अभी आता हूं। इन लोगों को नहीं जाना है।
(जारी)
एक शाम हम तीन दोस्त बड़ी हिम्मत जुटाकर बदनाम बस्ती सोनागाछी की निषिद्ध गली के मुहाने पर खड़े हुए। इरादा था कि गली के इस पार से सेंट्रल एवेन्यू तक निकल कर पूरी गली का जायजा लिया जाए। इससे पहले हममें से कोई भी इस गली से होकर गुजरा नहीं था।
जबरन चेहरे पर सहजता लाने की कोशिश करते हुए हम गली में ऐसे घुसे, जैसे किसी भी गली या सड़क से आम तौर पर राहगीर गुजरते हैं। सोनागाछी की गली में मेला-सा लगा था। सड़क के दोनों किनारे पर बदन दिखाऊ पोशाकों में, चेहरे पर जरूरत से ज्यादा क्रीम-पावडर पोते अलग-अलग उम्र की किशोरियां, युवतियां और तमाम कोशिश के बावजूद बढ़ती उम्र की निशानियां न छिपा पाती अधेड़ औरतें।
यह जिस्म का बाजार है। ये औरतें-लड़कियां आपस में बातचीत भी कर रही हैं और आने-जाने वालों को तरह-तरह के इशारे भी। सारा माहौल रोशनी में जगमग है। छनती प्याज की पकौडिय़ों और आलूचाप की वजह से समूची गली में जलते तेल और बेसन की गंध समाई हुई है। पकौडिय़ों और पान-सिगरेट की इन छोटी-मोटी दुकानों पर दो-तीन दिनों की बढ़ी हुई दाढ़ी वाले तमाम लोग अड्डे जमाए हुए हैं।
इनमें कुछ लोग इधर-उधर चहलकदमी भी कर रहे हैं। सबकी निगाहें गली में आने-जाने वालों पर टिकी हैं। अजीब चमक है इन निगाहों में। आपसे अगर इनकी नजर मिली तो लगेगा जैसे निगाहों के जरिए आपके भीतर कुछ टटोला जा रहा है।
निगाहें हमारी भी मिलीं और उधर से इशारे भी हुए। पर हम बराबर सहज बने रहने की कोशिश के साथ यूं चलते रहे, जैसे इस दुनिया से हमारा कोई वास्ता नहीं है।
एक गुमटी के सामने सिगरेट सुलगाने के लिए हम खड़े ही हुए थे कि आजू-बाजू में तीन लोग आकर खड़े हो गए। हमारे कुछ बोले बिना ही किसी होटल के बेयरे की तरह उनका मुंहजबानी मेनू पेश हो गया-
- चलेगा, साब?
- बिल्कुल नया, ताजा माल है।
- एक बार देख तो लीजिए, तबियत खुश हो जाएगी।
फिर इसके बाद देश के जितने प्रदेशों के नाम उन्हें मालूम थे, उन सबका उन्होंने जाप कर डाला- बंगाली है, बिहारी है, यूपी है, पंजाबी है, मद्रासी है। नेपाली भी है। जो आपको पसंद हो, साहब।
इतना सुनते ही मेरे दोनों साथियों के चेहरे पर घबराहट उभर आई। अब वे जल्दी से जल्दी इस गली से निकल जाना चाहते थे। मैंने बात जारी रखने के खयाल से पूछा- कितने पैसे लगेंगे?
जवाब मिला- पचास रुपए से लेकर ढाई सौ तक। जैसी चीज, वैसा दाम। इससे ऊपर की भी हैं।
अब उनसे पीछा छुड़ाने के लिए काफी भरोसा दिलाते हुए मुझे कहना पड़ा- ठीक है, मैं अपने साथियों को सेंट्रल एवेन्यू तक छोड़कर अभी आता हूं। इन लोगों को नहीं जाना है।
(जारी)
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