अरविन्द चतुर्वेद :
बुद्धू चेरो जब से गांव लौटा है, उदास-उदास रहता है। लोग पूछते हैं, क्यों अब ओबरा कब जाओगे? बुद्धू जवाब देता है, चार महीने गांव पर ही रहेंगे, बरसात बाद सोचेंगे कि ओबरा ही जाना है कि दुद्धी या रेनूकूट। सालभर बाद ओबरा से बुद्धू आया है। उसका एक ममेरा भाई ओबरा में रहकर रिक्शा चलाता है, उसी ने नलराजा के मेले में बुद्धू को टोका था- गांव में रक्खा ही क्या है? एक तो बारहो महीने काम नहीं मिलता- चार महीने बैठना पड़ता है, दूसरे, काम भी करो तो वही घास-भूसा, धूल-माटी और कीचड़ में- ऊपर से मजूरी भी पूरी नहीं मिलती। बुद्धू को बात लग गई और मेले से लौटकर अगले दिन वह भी अपने ममेरे भाई के साथ रिक्शा चलाने ओबरा चला गया था। वहां सब ठीकठाक ही चल रहा था, दिन मजे में कट रहे थे, कि तभी एक हादसा हो गया, नहीं तो बुद्धू ओबरा छोड़ने वाला नहीं था। किराए का रिक्शा, एक्सीडेंट में इतना बुरी तरह टूट गया कि दिन-रात की मेहनत से कमाकर उसने जो थोड़े-बहुत पैसे बचाए थे, सब रिक्शा बनवाने में चले गए। वह तो "चेरो बाबा" की बड़ी भारी कृपा थी जो जान बच गई। बुद्धू का जी उचट गया। और, अब तो वह ओबरा शायद ही जाए। हां, सालभर वहां रहकर बुद्धू ने इतना सीख लिया है कि रिक्शा ही चलाना है तो ओबरा में रहो चाहे दुद्धी या रेनूकूट, बात एक ही है।
अभी भी वह हादसा बुद्धू की आंखों में तैरता रहता है, इस तरह :
जब तक ट्रक का मालिक अपने ड्राइवर और खलासी के साथ पुलिस चौकी पहुंचा, उसके पहले ही बुद्धू दीवान से अपनी बात कह चुका था। इसलिए ट्रक वालों के वहां पहुंचने पर बड़ी बेतकल्लुफी के साथ दीवान ने दफ्तर की ओर इशारा करते हुए कहा- चलो, उधर चलो, और पैजामे पर खाकी कमीज चढ़ाते, ढक्कनदार जेब में कलम खोंसते, बीड़ी मुंह से लगा ली।
थाने के बाहर खड़ी तमाशबीन भीड़ में एक्सीडेंट की चर्चा थी। पहाड़ी के पास वाले मोड़ पर ट्रक से रिक्शे को धक्का लगा था, जिससे रिक्शे का दाहिनी तरफ का पिछला पहिया चूर-चूर हो गया था। बुद्धू को हल्की-फुल्की
खरोंच भर लगी थी। वह मौत के मुंह में जाते-जाते बाल-बाल बच गया था।
दफ्तर में पहुंचते ही दीवान ने एक सरसरी, मगर तेज निगाह ड्राइवर, ट्रक मालिक और बुद्धू पर फेंकते हुए पूछा- हां, तो मामला क्या है? बुद्धू ने गला साफ करते हुए कहा- सरकार, मैं पहाड़ी की चढ़ाई पर, जहां घुमाव है, आ रहा था। गाड़ी पीछे से आई और साइड से रिक्शे को धक्का...
बीच में ही बुद्धू की बात काटते हुए दीवान ने अपनी बात शुरू की- तुम पढ़े-लिखे हो?
- नहीं सरकार, पढ़ा-लिखा होता तो रिक्शा खींचता।
- जितना पूछा जाए, उतने का ही जवाब दो। ज्यादा काबिलियत मत बघारो। समझे?
- समझा सरकार।
- क्या समझे, कौन तुम्हारी दरख्वास्त लिखेगा?
बुद्धू दीवान का मुंह ताकने लगा।
- मुंह क्या देखते हो? जाओ, किसी से दरख्वास्त लिखाकर लाओ। फलां नंबर की गाड़ी से धक्का लगा, इतना-इतना नुकसान हुआ, और जो कुछ तुम कह रहे हो-जाओ, जल्दी से आना, नहीं तो फिर मैं नहीं जानता।
अब दीवान गाड़ीवालों की ओर मुखातिब हुआ- गाड़ी का कागज कहां है?
- गाड़ी में है, दीवान जी। अभी मंगवाते हैं। ट्रक मालिक ने ड्राइवर से कहा- जाओ जी, गाड़ी का कागज ले आओ।
- ड्राइवर नहीं, खलासी को भेजो। ड्राइवर पर नजर गड़ाते हुए दीवान ने हिदायत दी।
खलासी के जाने के बाद दीवान ने ड्राइवर से पूछा- तुम्हारा लाइसेंस है?
- ग्-ग्-गाड़ी में है, साहब। थूक निगलते हुए ड्राइवर हकलाया।
- देखो, मेरे बाल ऐसे ही सफेद नहीं हुए हैं। पढ़ा रहे हो? दीवान ने घुड़की दी।
अब ड्राइवर चुप हो गया।
इतने में खलासी के आते ही "लाओ, इधर लाओ" कहते हुए दीवान ने हाथ बढ़ाकर कागज ले लिया। कागज उलटते-पुलटते कुछ क्षणों के मौन के बाद बोला- कागज तो ठीक है। मगर, एक्सीडेंट तो हुआ ही। फिर ड्राइवर का लाइसेंस भी नहीं है। देखो, ड्राइवर को बंद करेंगे। गाड़ी लाकर थाने के अहाते में खड़ी कर दो।
दीवान की आवाज में रौब और बुलंदी दोनों थी। उसने कुछ पढ़ने के अंदाज में ट्रक मालिक की ओर देखा।
ट्रक मालिक खंखारते हुए, बगल में रखी कुर्सी के हत्थे पर हाथ टिकाकर थोड़ा झुक गया। चेहरे पर और आवाज में मुलायमियत लाते हुए उसने कहा- दीवान जी, आपके ही क्षेत्र की गाड़ी है। ड्राइवर ने क्रेक भी मारा, गाड़ी को
साइड से काटा भी। लेकिन, गाड़ी मोड़ पर थी। रिक्शा पूरी सड़क पर था। बॉडी से तनिक-सा धक्का लगा है, साहब। हम उसका रिक्शा बनवा देते हैं, दीवान जी।
- हुंह, हम बताएं कितना धक्का लगा है? देखो, उल्टी-सीधी बात मत करो। रिक्शा बनवाना था तो थाने क्यों आए? सीधी-सीधी बात करो।
- तो आप ही कोई रास्ता निकालिए, दीवान जी।
दीवान थोड़ा नरम हुआ।
- देखो, मामला रफा-दफा कराने की बात हो तो पांच सौ रूपए निकालो। उसका रिक्शा बनवाने की भी बात है। लोग खामखा पुलिस को बदनाम करते फिरते हैं।
- तो रफा-दफा कर दीजिए। ट्रक मालिक ने दीवान को "हरी पत्ती" थमा दी।
वर्दी की ढक्कनदार जेब में इत्मीनान से नोट डालते हुए दीवान ने अपनी फाइल उलटी। फिर फाइल से एक सादा कागज निकाल कर ड्राइवर को करीब आने का इशारा करते हुए कागज उसकी तरफ सरका दिया।
कुछ मिनटों में कागजी खानापूरी हो गई। ड्राइवर से कागज-कलम लेते हुए दीवान बोला- अब तुम लोग, बस निकल लो।
थाने से बाहर निकल कर ट्रक मालिक और ड्राइवर ने लंबी सांस छोड़ी। उनके चेहरे पर थोड़ी तसल्ली, थोड़ी खीझ से मिलीजुली मुस्कराहट फैल गई।
उनके जाने के दस मिनट बाद ही बुद्धू फुलस्केप कागज पर दरख्वास्त लिखा कर हाजिर हो गया- लिखा लाया हुजूर!
- क्या लिखा लाए? दीवान अपना सिर खुजलाते हुए झुंझलाया।
उसने अपनी त्यौरियां बदलीं- झट से थाने में रपट लिखाने चले आए। तुम छोटे दिमाग के आदमी, बड़ी बात सोच ही नहीं सकते। उतनी बड़ी लोड गाड़ी, वह भी मोड़ पर। पलट जाती तो क्या होता? जाओ, आगे से संभल कर साइड से चला करो। दरख्वास्त इधर लाओ।
बुद्धू के हाथ से दरख्वास्त लेकर देखते हुए दीवान ने कहा- ठीक है, और उस पर बुद्धू के अंगूठे का निशान लेकर बीस रूपए देते हुए बोला- जाओ, कार्रवाई कर दिया है।
बुद्धू के थाने से बाहर निकलते ही दीवान ने दरख्वास्त के टुकड़े-टुकड़े कर खिड़की से बाहर हवा में उछाल दिया।
बुद्धू अपने अंगूठे पर लगी रोशनाई देखता थाने का अहाता पार कर सड़क पर आ गया। जान बचाने के लिए मन ही मन उसने एक बार फिर "चेरो बाबा" को याद किया था।
इस घटना के अगले ही दिन बुद्धू ओबरा से गांव चला आया।....जारी
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